Rajeev kumar

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ठगी के शिकार

ठगी के शिकार

आँखों से छलका मन का दर्द, लाख छुपाने  की कोशिश के बाद भी छुपाना मुश्किल। कोई पत्थर दिल ही होगा जो आँसूओें की चिंगारी से भी न पिघले। कभी-कभी राज छुपाना बहूत ही घात होे जाता है, इतना घातक की नुकसान के अलावा कुछ भी नहीं होता। यही सब सोच-विचार अमृता के मन  में आ रहे थे। उसके मन के आधे हिस्से में यह भी पनपा था कि हल्ला हो गया तो जग-हंसायी हो जाएगी।
अमृता ने अपने आँसू पोंछे और ’’ कुछ भी तो नहीं। ’’ बोेल कर अमर को चलने का इशारा किया।
एक  तो रास्ते का सुनापन उस पर अमृता  और अमर के सिले हुए होंठ। अमृृता के दिल में कश्मकश दहाड़ मार रहा था और अमर के मन में जीज्ञासा।
अमर ने  बस इतना ही कहा ’’  हमको बस इतना मालूूम है कि तुम मुझ से कुछ छुपा रही हो। ’’
सुनसान  रास्ता खत्म हुआ औेर अब तो भीड़-भाड़ और शोर-शराबा था।  दोनांे राही की  एक ही  मंजील, रमेश का घर। रमेश के घर में लटका हुआ ताला देेख कर अमर और अमृता के होश उड़ गए, मगर  एक दुसरे के होश उड़नेे का एक-दुसरे को पता न चला।
अमर ने कहा ’’ साला-कमीना, मेेरे पचास हजार रूपए लेकर चम्पत होे गया, छोड़ूंगा नहीं उसको।
अमृृता ने मन ही मन कहा ’’ दिदी के सारे गहने लेकर फरार हो गया, इसलिए फोन भी स्वीच आॅफ कर रखा है। ’’
अमृता की आँखें एक बार फिर नम हो आयीं मगर अपना दुःख साझाा किए वगैर वहाँ से चली आई।
अमर भी अपने रास्ते हो लिया।

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7 Comments

Rupesh Kumar

18-Dec-2023 07:35 PM

Nice

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Khushbu

18-Dec-2023 05:13 PM

Nyc

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Shnaya

17-Dec-2023 02:26 PM

Nice

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